
सब मिल जाता है इस मेले में।
खिलौने, चूड़ियां, मिट्टी के बर्तन, और यहां की मशहूर चाट-पकौड़ी –
हर चीज़ में बसी है हमारी देसी खुशबू।
[SCENE 3 – मेला की विशेषताएं]
यहाँ आता है नाटक मंच, लोकगीत, और अखाड़ा भी।
बुजुर्ग लोग बताते हैं कि कभी यहाँ रामलीला और हाथी-सवारी भी होती थी।
आज भी लोक गायक ढोलक और मंजीरा के साथ गीत गाते हैं –
"मेला आया रे मेला, पचपेरवा का मेला..."
[SCENE 4 – इंटरव्यू / लोगों की बातें]
🎤 Naushad: “अम्मा जी, आप हर साल आती हैं?”
👵 “हाँ बेटा, जब से ब्याह हुआ, तबसे देख रहे हैं मेला। अब तो पोता-पोती को भी लाते हैं।”
🎤 Naushad: “बच्चे, सबसे अच्छा क्या लगता है मेले में?”
👧 “झूला और गुब्बारा!”
[SCENE 5 – Blogger Viewpoint]
एक ब्लॉगर होने के नाते, ये मेला मेरे लिए सिर्फ एक event नहीं है –
ये मेरे गांव की पहचान है।
यहां हर मुस्कान, हर झूला, हर दुकान एक कहानी कहती है।
और यही कहानियां मैं आपके साथ बांटने आया हूं।
[SCENE 6 – रात्रि का दृश्य, लाइटिंग, भीड़ और समापन]
रात होते ही मेले की रौनक और बढ़ जाती है।
बल्बों की लाइटें, ढोल की आवाज़, और लोगों की चहलकदमी –
एक सपना सा लगता है ये मेला।
[OUTRO – संदेश]
तो दोस्तों, अगर आप भी कभी उत्तर प्रदेश के इस कोने में आएं,
तो पचपेरवा मेला ज़रूर देखें।
यहाँ सिर्फ सामान नहीं मिलता – यहाँ स्मृतियाँ मिलती हैं।
मैं हूं Naushad, एक देसी ब्लॉगर, जो आपको दिखाता है गांव की वो तस्वीर जो अखबारों में नहीं होती।
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आपके गांव या शहर में कौन सा मेला लगता है?
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