
शिप्रा नदी किनारे बसा शहर उज्जैन, जिसे बाबा महाकाल की नगरी कहा जाता है। यहां सम्राट विक्रमादित्य भी हुए हैं। महाकवि कालिदास ने भी शिप्रा तट उज्जैन में ही कई साहित्य की रचनाएं की। मध्यप्रदेश की राजधानी भोपाल से 180 किलोमीटर दूर और महानगर इंदौर से 60 किलोमीटर दूर बसा है उज्जैन। स्कन्दपुराण के अवंति खंड में उज्जैन का विस्तृत वर्णन है। इसके अलावा अन्य कई पुराणों में उज्जैन का जिक्र किया गया है। वर्तमान में यह नगरी उज्जैन नाम से प्रसिद्ध है, परंतु विभिन्न कालखंड में यह अवंति, विशाला, पुष्पकरंडिनी, पद्मावती, कुमुद्वती, कनकशृंगा, कुशस्थली, अमरावती, हिरण्यवती, उज्जयिनी, भोगवती व प्रत्येक कल्प में अवस्थित होने के कारण प्रतिकल्पा के नाम से भी जानी गई। यहां सप्त सागर आज भी विद्यमान हैं। सप्तपुरिया में उज्जैन की गिनती होती है।
महाकाल लोक जाने के लिए
महाकाल लोक प्रात: 6 बजे खुलता है और रात को 10 बजे बंद होता है। यदि आप अपने चारपहिया वाहन से महाकाल लोक देखने आए हैं तो महाकाल लोक के पास ही वाहन पार्किंग बनाई गई है। यहां आप अपने वाहन को पार्क कर सकते हैं। वाहन पार्क करने के बाद सामने ही आपको महाकाल लोक के लिए प्रवेश द्वार मिलेगा। यहां से प्रवेश करने के बाद आपको त्रिवेणी संग्रहालय भी यहीं मिलेगा, जहां उज्जैन व आसपास से मिले पुरावशेष देख सकते हैं।